सुबह के पांच बजे थे जब केदारनाथ धाम के पवित्र शांत वातावरण में एक हेलिकॉप्टर ने उड़ान भरी। पायलट कर्नल राजवीर सिंह चौहान ने कंट्रोल स्टिक संभाली हुई थी। साथ में बद्री-केदार मंदिर समिति के प्रतिनिधि विक्रम रावत, उम्रदराज विनोद देवी, उनकी पोती तुष्टि सिंह और महाराष्ट्र से आए राजकुमार जायसवाल परिवार सवार थे। मात्र 10 मिनट की उड़ान के बाद गौरीकुंड के घने जंगलों से धुआं उठता दिखा। जब रेस्क्यू टीमें पहुँचीं तो मलबे में सात जिंदगियाँ ढह चुकी थीं। यह उत्तराखंड में छह हफ्तों में चार धाम यात्रा रूट पर हुआ पाँचवाँ हेलिकॉप्टर हादसा है जिसकी वजह बारिश और घने बादलों के बीच उड़ान भरना बताया जा रहा है। मगर सवाल यह है कि इतनी जानें गँवाने के बाद भी हेलिकॉप्टर कंपनियाँ सुरक्षा नियमों को क्यों ताक पर रख रही हैं?
कैसे हुआ हादसा? हर मिनट का हाल
15 जून की सुबह 5:10 बजे हेलिकॉप्टर VT-BKA ने गुप्तकाशी से उड़ान भरी और 5:18 बजे केदारनाथ हेलिपैड पर लैंड किया। कुछ यात्री उतरे और नए चढ़े जिसके बाद 5:19 बजे वापसी की उड़ान भरी गई। गौरीकुंड की घाटी में घना कोहरा और बादल छाए हुए थे जिसके बाद विमान ने रडार से संपर्क खो दिया। करीब 5:30 से 5:45 के बीच विमान जंगलों में जा गिरा और एनडीआरएफ की टीमों को पाँच घंटे बाद मलबा मिला जिसमें सभी सवार जलकर खाक हो चुके थे। शुरुआती जाँच में पता चला कि यह "कंट्रोल्ड फ्लाइट इनटू टेरेन (CFIT)" का मामला था जिसमें विमान तो ठीक था मगर खराब मौसम में पायलट का ओरिएंटेशन खो जाने के कारण विमान जमीन से टकरा गया। डीजीसीए के नियमों के मुताबिक खराब मौसम में उड़ान मना है फिर भी विमान उड़ाया गया जिससे साफ जाहिर होता है कि कंपनी ने नियमों की धज्जियां उड़ाई थीं।
हादसे में मारे गए लोग: कौन थे वो 7 लोग?
इस हादसे ने जिन सात परिवारों को तबाह किया उनकी कहानियाँ दिल दहला देने वाली हैं। पायलट राजवीर सिंह चौहान सेना से रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल थे जिन्होंने 15 साल सेना में सेवा दी थी और शादी के दस साल बाद उन्हें जुड़वाँ बच्चों का पिता बनने का सुख मिला था। विक्रम रावत बद्री-केदार मंदिर समिति के प्रतिनिधि थे जो पूजा-अर्चना करके वापस लौट रहे थे। उत्तर प्रदेश से आईं विनोद देवी अपनी 19 साल की पोती तुष्टि सिंह के साथ तीर्थयात्रा पर आई थीं जिनकी एक साथ मौत हो गई। महाराष्ट्र के राजकुमार जायसवाल, उनकी पत्नी श्रद्धा और उनकी दो साल की बेटी काशी भी इस उड़ान में सवार थे जबकि उनका बेटा संयोग से दादा के साथ यवतमाल में रुक गया था जिसकी वजह से उसकी जान बच गई मगर पूरा परिवार उजड़ गया।
6 हफ्ते में 5 हादसे: क्यों नहीं सुधर रहीं कंपनियाँ?
30 अप्रैल से शुरू हुई चार धाम यात्रा में यह छठे हफ्ते में पाँचवाँ हेलिकॉप्टर हादसा हो चुका है जिसमें 8 मई को गंगोत्री के पास क्रैश में 6 लोगों की मौत हुई थी, 12 मई को बद्रीनाथ हेलिकॉप्टर इमरजेंसी लैंडिंग हुई थी, 17 मई को केदारनाथ में एम्बुलेंस क्रैश-लैंडिंग हुई थी और 7 जून को तकनीकी खराबी से इमरजेंसी लैंडिंग में पायलट घायल हुआ था। रुद्रप्रयाग पुलिस ने आर्यन एविएशन के खिलाफ धारा 105 (करप्ट प्रैक्टिस से मौत) और एयरक्राफ्ट एक्ट के तहत केस दर्ज किया है जबकि कंपनी ने हर मृतक के परिवार को ₹5 लाख मुआवजा देने का ऐलान किया है। कांग्रेस नेता सूर्यकांत ढसमाना का सवाल है कि हेलिकॉप्टर कंपनियाँ पैसा कमाने की होड़ में सुरक्षा को ताक पर क्यों रख रही हैं जबकि एक्टिविस्ट अनूप नौटियाल गुस्से में पूछते हैं कि क्या पाँच हादसों के बाद भी कोई जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा?
सरकार ने क्या कदम उठाए? अब क्या बदलेगा?
हादसे के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तुरंत हाई-लेवल मीटिंग बुलाकर आर्यन एविएशन की चार धाम यात्रा पर तुरंत बैन लगा दिया और ट्रांसभारत एविएशन के दो पायलटों के लाइसेंस 6 महीने के लिए सस्पेंड कर दिए क्योंकि वे भी खराब मौसम में विमान उड़ा रहे थे। 15-16 जून के लिए सभी हेलिकॉप्टर सेवाएँ रोक दी गई हैं जबकि UCADA (उत्तराखंड सिविल एविएशन डेवलपमेंट अथॉरिटी) को नया कमांड सेंटर बनाने का निर्देश दिया गया है जो रियल-टाइम में हर उड़ान पर नजर रखेगा। अब सिर्फ वही पायलट उड़ान भर सकेंगे जिन्हें हिमालयी इलाकों में उड़ान का लंबा अनुभव होगा। सिविल एविएशन मिनिस्ट्री ने साफ कहा है कि सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं होगा और डीजीसीए की टीमें अब केदार घाटी में सीधे तौर पर निगरानी रखेंगी जबकि नए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) बनाए जा रहे हैं जिसमें मौसम जाँच और विमान की फिटनेस जाँच अनिवार्य होगी।
केदारनाथ के पवित्र मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर जिस जंगल में हेलिकॉप्टर का मलबा पड़ा है वहाँ अब सन्नाटा है और सात लाशें उठ चुकी हैं जबकि परिवार वाले रो रहे हैं। सरकार ने कदम तो उठाए हैं मगर असली सवाल यह है कि क्या पाँचवें हादसे के बाद भी हम सबक सीख पाएँगे और क्या अगली बार कोई माँ अपने बच्चे को हेलिकॉप्टर में बैठाते वक्त नहीं डरेगी। केदारनाथ के बर्फीले पहाड़ों ने फिर एक सबक दिया है कि भगवान भरोसे नहीं बल्कि सुरक्षा नियमों का पालन करके ही तीर्थयात्रियों की जान बचाई जा सकती है और अब देखना यह है कि नए SOP और कमांड सेंटर कागजों तक ही सीमित रहते हैं या हकीकत में बदलाव लाते हैं।
