माधुरी हाथी विवाद: अंबानी के वंतारा और जैन समुदाय के बीच तनाव

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By - jordarkhabar.in
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34 साल से एक जैन मंदिर में रह रही माधुरी नाम की हाथी आज देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है। इस हाथी को लेकर अंबानी के वंतारा एनिमल रेस्क्यू सेंटर और महाराष्ट्र के जैन समुदाय के बीच तनाव चरम पर है। जहाँ एक तरफ कोर्ट ने हाथी के कल्याण के लिए उसे वंतारा भेजने का आदेश दिया है, वहीं हजारों लोग इसे अपनी धार्मिक भावनाओं पर चोट बता रहे हैं। आखिर क्यों एक हाथी इतना बड़ा विवाद बन गया है? आइए समझते हैं पूरा मामला...

माधुरी हाथी के लिए कोल्हापुर में विरोध प्रदर्शन
34 साल पुरानी परंपरा बनाम हाथी का कल्याण

क्या है माधुरी हाथी का मामला?

माधुरी नाम की यह 40 साल की हथिनी पिछले 34 साल से महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के नंदनी जैन मठ में रह रही थी। जुलाई 2025 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाथी को वंतारा सेंटर भेजने का आदेश दिया। कोर्ट ने हाथी के स्वास्थ्य को देखते हुए यह फैसला लिया, जिसमें गठिया, पैरों में घाव और मानसिक तनाव की बात सामने आई थी। हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि माधुरी उनके लिए सिर्फ एक हाथी नहीं बल्कि धार्मिक आस्था का प्रतीक है।


विरोध प्रदर्शनों ने लिया बड़ा रूप

3 अगस्त को कोल्हापुर में 30,000 से ज्यादा लोग सड़कों पर उतर आए। उनका एक ही नारा था - "माधुरी को वापस लौटाओ"। इस विरोध के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हस्तक्षेप किया। उनकी मीटिंग के बाद एक समझौता हुआ जिसमें वंतारा ने कोल्हापुर में ही एक नया रिहैबिलिटेशन सेंटर बनाने का प्रस्ताव रखा। इस सेंटर में हाइड्रोथेरेपी, लेजर ट्रीटमेंट और खुले मैदान जैसी सुविधाएं होंगी, जहाँ माधुरी को रखा जा सकेगा।


अब तक की क्या है स्थिति?

फिलहाल माधुरी को वंतारा सेंटर में रखा गया है जहाँ उसका इलाज चल रहा है। वहीं महाराष्ट्र सरकार और जैन मठ ने सुप्रीम कोर्ट में एक नई याचिका दायर की है। अगले कुछ दिनों में कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाएगा। इस बीच स्थानीय लोगों ने रिलायंस जिओ के बहिष्कार की भी घोषणा की है और रिपोर्ट्स के मुताबिक 150,000 से ज्यादा यूजर्स ने नेटवर्क बदल लिया है।


यह मामला सिर्फ एक हाथी तक सीमित नहीं रह गया है। यह अब भारत में पशु कल्याण और धार्मिक भावनाओं के बीच संतुलन बनाने की बड़ी चुनौती बन चुका है। एक तरफ जहाँ पशु अधिकार संगठन हाथी के बेहतर जीवन की मांग कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय समुदाय इसे अपनी सदियों पुरानी परंपराओं पर हमला मान रहा है। अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं जो शायद इस विवाद का अंतिम समाधान देगा।

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