असम एक बार फिर प्रकृति के कहर से कराह रहा है। लगातार हो रही भारी बारिश ने राज्य को बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में ले लिया है। अब तक 8 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 78,000 से ज़्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। ब्रह्मपुत्र समेत 10 नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं, और सेंट्रल वॉटर कमीशन ने ऑरेंज अलर्ट जारी किया है। गुवाहाटी समेत कई इलाकों में सड़कें और रेलवे ट्रैक पानी में डूब गए हैं, जिससे यातायात पूरी तरह ठप हो गया है।
"नदी मेरे घर से सिर्फ 100 मीटर दूर है, सब कुछ बह जाएगा"
उदलगुड़ी जिले के खागरबाड़ी गांव के किसान भक्त बहादुर छेत्री की आवाज़ डर और बेबसी से कांप रही है। उनका कहना है, "पिछले पांच साल में नदी हमारे घर से 2 किलोमीटर दूर से अब सिर्फ 70 मीटर दूर रह गई है। मेरी पूरी ज़मीन और फसल डूब गई। सरकार ने कभी तटबंध ठीक नहीं किया।" छेत्री जैसे हज़ारों लोगों की कहानी आज असम की त्रासदी बयां कर रही है।
कामरूप जिले की रहने वाली शांतना दास बताती हैं, "रातोंरात पानी इतना बढ़ गया कि हमें छत पर चढ़ना पड़ा। बच्चे रो रहे थे, खाने को कुछ नहीं था। तीन दिन बाद ही राहत टीम आई।"
सेना और NDRF की टीमें राहत अभियान में जुटीं
असम राइफल्स और भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन जल राहत 2' शुरू किया है। अब तक 800 से ज़्यादा लोगों को सुरक्षित निकाला जा चुका है। NDRF की टीमें बोट के ज़रिए फंसे हुए लोगों को बचा रही हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा से बात कर हर संभव मदद का आश्वासन दिया है।
राहत शिविरों में हालात भी बेहाल हैं। करीमगंज के एक शिविर में रह रहे रामेश्वर दास बताते हैं, "एक कमरे में 10-12 परिवार रह रहे हैं। बच्चों को बुखार है, लेकिन डॉक्टर नहीं आए।"
क्यों हर साल बढ़ रहा है असम का दर्द?
विशेषज्ञों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन और इंसानी लापरवाही ने असम की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पिछले 70 साल में ब्रह्मपुत्र ने 4,27,000 हेक्टेयर ज़मीन निगल ली है। माजुली द्वीप का आकार 880 वर्ग किलोमीटर से घटकर 352 वर्ग रह गया है।
असम के जलवायु परिवर्तन मंत्री केशब महंत ने चेतावनी दी है कि सदी के मध्य तक असम में भारी बारिश की घटनाएं 38% और बाढ़ 25% तक बढ़ सकती हैं। वनों की कटाई और तटबंधों की खराब हालत ने समस्या को और गंभीर बना दिया है।
असम की यह त्रासदी सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि इंसानी लापरवाही का नतीजा है। जब तक नदियों के प्रबंधन और जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, तब तक हर साल हज़ारों लोगों को यही दर्द झेलना पड़ेगा। फिलहाल, प्रशासन का पूरा ध्यान राहत और बचाव कार्यों पर है, लेकिन सवाल यह है कि क्या अगले साल भी हमें ऐसी ही तस्वीरें देखनी पड़ेंगी?
