मध्य प्रदेश में एक ऐसा रहस्य सामने आया है जिसने पूरे सिस्टम को हिला दिया है। करीब 50,000 सरकारी कर्मचारी छह महीने से अपना वेतन नहीं पा सके हैं, और हैरानी की बात ये है कि कोई भी शिकायत लेकर नहीं आया! इसी चुप्पी ने बड़े सवाल खड़े किए हैं। क्या ये सभी असली कर्मचारी हैं या फिर ये कोई 230 करोड़ रुपये का बड़ा घोटाला है? राज्य सरकार ने तुरंत जाँच शुरू कर दी है और 6,000 से ज़्यादा अधिकारियों को नोटिस भेजे गए हैं। क्या निकलेगा इस पूरे मामले का सच? पढ़िए पूरी खबर...
क्या है पूरा मामला? सॉफ्टवेयर ने दिखाई गड़बड़ी!
सब कुछ तब शुरू हुआ जब मध्य प्रदेश के वित्त विभाग ने अपने कंप्यूटर सिस्टम IFMIS में कुछ अजीबोगरीब चीज़ें देखीं। पता चला कि 50,000 कर्मचारियों (जिनमें से 40,000 नियमित और 10,000 अस्थायी हैं) का वेतन दिसंबर 2024 से ही उनके खातों में नहीं गया। ये सभी कर्मचारी सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज तो थे, उनके पास वैध आईडी कोड भी थे, लेकिन उनका पैसा कहाँ गया? ये बात किसी को समझ नहीं आई। वित्त विभाग के एक अधिकारी ने बताया, "ऐसा लगता है जैसे ये लोग कागज़ों पर तो हैं, लेकिन असल दुनिया में इनका कोई अस्तित्व ही नहीं!"
अधिकारी क्यों घबरा गए? 6,000 DDOs पर जाँच!
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल ये उठा कि अगर किसी कर्मचारी को वेतन नहीं मिला, तो उसने शिकायत क्यों नहीं की? इसी शक के बाद राज्य सरकार ने तेजी से कदम उठाए। कमिश्नर ऑफ ट्रेजरी (CTA) भास्कर लक्षकर ने 23 मई को एक आदेश जारी किया और 6,000 ड्राइंग एंड डिस्बर्सिंग ऑफिसर्स (DDOs) को नोटिस भेजे। इन अधिकारियों को सिर्फ 15 दिनों में जवाब देना था - ये समय शुक्रवार (6 जून) को खत्म हो गया। लक्षकर ने साफ किया, "हमें डेटा चेक करते समय ये गड़बड़ी दिखी। हम किसी तरह के घोटाले को होने से पहले ही रोकना चाहते हैं।"
वित्त मंत्री बोले 'नियम के अनुसार', विपक्ष ने माँगी CBI जाँच
जब इस मामले पर राज्य के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा से सवाल किया गया, तो वे बहुत असहज नजर आए। उन्होंने बस इतना कहा, "जो भी प्रक्रिया है, नियम के अनुसार होती है," और वहाँ से चले गए। लेकिन विपक्ष ने इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया। तृणमूल कांग्रेस ने सोशल मीडिया पर जोरदार हमला बोला और CBI जाँच की माँग की। पार्टी ने पूछा, "प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री मोहन यादव, आपकी चुप्पी क्यों है? क्या ये 230 करोड़ का घोटाला आपकी नजरों से छिपा रहा?"
क्या होगा आगे? वेतन मिलेगा या पकड़े जाएँगे घोटालेबाज़?
अब सबकी नजरें इस जाँच के नतीजे पर टिकी हैं। अगर पता चलता है कि ये सभी कर्मचारी असली हैं, तो उन्हें उनका बकाया वेतन (लगभग 230 करोड़ रुपये) मिलना चाहिए। लेकिन अगर इनमें से ज्यादातर भूत कर्मचारी निकले, तो ये मध्य प्रदेश के इतिहास का सबसे बड़ा वेतन घोटाला साबित होगा। अधिकारी ये भी जाँच रहे हैं कि कहीं पिछले दिनों में दमोह जिले की उन जुड़वा बहनों की तरह तो कोई चालबाजी नहीं हुई, जिन्होंने 18 साल तक एक ही आईडी से दो नौकरियाँ कीं! फिलहाल, प्रदेश के कर्मचारी और आम जनता बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं कि इस पूरे रहस्य का सच सामने आए।
मध्य प्रदेश का ये वेतन घोटाला सिर्फ पैसों का मामला नहीं है, बल्कि ये सरकारी सिस्टम में पारदर्शिता का सवाल है। जाँच के नतीजे ये तय करेंगे कि यहाँ काम करने वाले हजारों ईमानदार कर्मचारियों का भरोसा टूटेगा या मजबूत होगा। आने वाले दिनों में इस मामले से जुड़ी नई जानकारियाँ सामने आने की उम्मीद है।
