16 साल के इंतज़ार के बाद भारत की जनगणना होने जा रही है, और इस बार यह इतिहास बनाएगी। 2027 तक पूरी होने वाली यह गिनती पहली बार डिजिटल तरीके से की जाएगी और आज़ादी के बाद पहली बार हर नागरिक की जाति पूछी जाएगी। यह फैसला राजनीति से लेकर रिजर्वेशन तक सब कुछ बदल सकता है, लेकिन सवाल यह है - क्या यह देश को जोड़ेगी या तोड़ेगी?
क्यों इतना स्पेशल है यह जनगणना?
2011 के बाद यह पहली जनगणना होगी, जिसमें 30 लाख से ज़्यादा कर्मचारी घर-घर जाएंगे। लेकिन इस बार वे फॉर्म भरने की बजाय टैबलेट या मोबाइल ऐप पर डेटा दर्ज करेंगे। सरकार का कहना है कि यह पूरी तरह डिजिटल होगी और 1 मार्च 2027 तक पूरी हो जाएगी। हिमालयी राज्यों में यह प्रक्रिया अक्टूबर 2026 से शुरू होगी क्योंकि वहां सर्दियों में काम करना मुश्किल होता है।
जाति का सवाल: क्यों है इतना बवाल?
1931 के बाद पहली बार जनगणना में हर नागरिक से उसकी जाति पूछी जाएगी। यह फैसला सरकार के लिए बड़ा U-टर्न माना जा रहा है क्योंकि पहले BJP इसे लेकर हमेशा अड़ती थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) की असली संख्या पता चलेगी, जिसके बाद रिजर्वेशन की मांग और तेज़ हो सकती है। बिहार के सर्वे में तो OBC-EBC की आबादी 63% निकली थी।
आखिर क्यों हुई इतनी देर?
जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन COVID-19 और फिर लॉजिस्टिक दिक्कतों की वजह से टलती रही। इस देरी की वजह से सरकारी योजनाओं को बनाने में दिक्कत आ रही थी क्योंकि 2011 का डेटा अब पुराना हो चुका है। अब तक का सबसे लंबा गैप होगा - 16 साल! जबकि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी 1941 की जनगणना हुई थी।
क्या बदलेगा अब?
इस जनगणना के नतीजे 2029 के चुनाव से पहले आने की उम्मीद नहीं है, लेकिन यह देश की तस्वीर बदल सकती है। जाति के आंकड़े आने के बाद रिजर्वेशन, चुनावी सीटों का बंटवारा और सरकारी योजनाएं सभी प्रभावित होंगे। एक बात तो तय है - 2027 तक यह मुद्दा गरमाता रहेगा और राजनीति का केंद्र बना रहेगा!
